बुधवार, 23 जून 2010

सृजन रुका नहीं करता है...



चाहे जितने झंझा आये
पर्वत डिगा नहीं करता है
जीवन  की कठिन परीक्षा  से
कर्मठ  हटा नहीं करता है

 एक कलम जो जाए टूट 

सृजन रुका नहीं करता है
कुछ पन्नों के फट  जाने से

लेख मिटा नहीं करता है 

दुःख के जब भी बदल छाए 
तब-तब  सुख की वर्षा लाये
काँटों की संगत पाकर भी 
गुलाब मुस्काया ही  करता है 

 तीखी गाली सुनकर  भी
सज्जन बुरा नहीं करता है 
कितने ही विषधर लिपटे हों
चन्दन मरा नहीं करता है 
(चित्र गूगल सर्च से साभार)