मंगलवार, 27 जनवरी 2015

‘पीले पत्ते’

“हेलो ऋतु ! मैं पार्क में तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ, तुम आ रही हो ना ?”
“आ रही हूँ ! माय फुट ! मैं तो तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती !”
“इतनी नाराज़गी ! “देखो, हम लिव इन रिलेशनशिप तो रख ही सकते हैं, और अब तो इसका चलन भी है।”
“लिव इन रिलेशनशिप ! शिशिर, तुमने मुझे धोखा दिया, मेरा तुमसे कोई वास्ता नहीं, अब मेरी जिंदगी के पीले पत्ते गिर चुके हैं, मैं वसंत से शादी करने जा रही हूँ, और खबरदार ! जो अब मुझे कॉल किया तो !”