रविवार, 19 जून 2016

कन्धों पर सपने और जोड़-तोड़ के कुछ किस्से, किस्से हर पिता के

उस दिन आँगन में किलकारी गूँजते ही तुम्हें अपने विशाल कन्धों का पहली बार एहसास हुआ था। जब तुमने एक कपड़े में लिपटे नन्हे धड़कते दिल को अपने सीने से पहली बार लगाया था। बरबस ही उसका माथा चूमते हुए तुमने उससे दुनिया की हर ख़ुशी देने का वादा किया था।

शाम को काम से लौटते समय प्यास से हलकान गले को तर करना चाहते थे। लेकिन उस खिलौने की दूकान की तरफ़ तुम्हारे कदम बढ़ गए। जिसे बचपन में कई बार दूर से देखा था तुमने। लेकिन उनको पाना शायद सपनों में ही हुआ था। वो लाल रंग की मोटर, ताली बजाने वाला गुड्डा और ना जाने कितने सपने। लेकिन आज तुम उन सपनों को साकार करना चाहते थे। तुमने अपनी जेब टटोली फिर मुस्कुराते हुए बढ़ गए उन सपनों को लेने।

एक हाथ में बैग और दूसरे हाथ में थैला पकड़े पसीने से लथपथ थे। रिक्शे वाले ने सामने से आवाज़ दी, “कहाँ चलना है बाबूजी !” तुम उसपर बैठना चाहते थे लेकिन तुम्हारी निगाह छोटी साईकिल की दुकान पर पड़ी। तुमने मुस्कुराकर रिक्शेवाले को मना कर दिया। क्योंकि अभी और जोड़ने थे कुछ पैसे उस छोटी साईकिल के सपने को सच करने के लिए।

चलते-चलते कई बार तुम्हारी सैंडल का पट्टा उखड़ जाता था। तुम हर बार उसपर एक कील ठुकवा लेते थे। तुम्हारी सैंडल पर कीलों और सिलाइयों की संख्या बढ़ती जा रही थी। लेकिन तुम खुश थे। आज तुमने अपने बगल में पकड़ रखी थी एक छोटी सी लाल साईकिल और नन्हें स्पोर्ट्स शूज़।

दर्जी से अपनी शर्ट का घिसा कॉलर पलटवा लिया था। स्वेटर की उधड़ी बुनाई ठीक करवा ली थी। तुम बहुत खुश थे क्योंकि तुमने समय से भर दी थी उस स्कूल की फ़ीस। जिसको तुमने बचपन में कई बार बाहर से देखा था। लेकिन अंदर जाना एक सपना था।

तुमने कुछ बहाना बनाकर बंद करवा दिया था रात का दूध। जिसको पिए बिना तुम सो नहीं पाते थे। लेकिन उसके बाद तुम्हारी नींद पहले से और गहरी हो गई थी। क्योंकि तुमने हॉस्टल और कॉलेज के चार्जेज़ का आख़िरी इंस्टालमेंट भर दिया था।

आज तुमको अपने कंधे कुछ हलके लग रहे होंगे। क्योंकि आज तुम महसूस कर रहे हो अपने अंदर के पिता को, अपने पिता को। लेकिन अभी भी तुम सोते-सोते चौंक कर उठ जाते हो। फिर सोचने लगते हो कि कोई ख़ुशी बाकी तो नहीं रह गई। जो उस नन्हें धड़कते दिल को चाहिए।

चित्र गूगल से साभार 

1 टिप्पणी:

  1. मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
    सच माँ के साथ-साथ एक पिता को भी अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करना पड़ता है, जीवन भर उन्हें के लिए अपना दुःख-सुख भूलकर उनकी ख़ुशी के लिए जुटा रहता है

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